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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
बोर्ड को वर्तमान स्तर पर स्थापित करने के लिए वर्षों तक हुई प्रगति महत्वपूर्ण परिवर्तनों को दर्शाती है। उत्तर प्रदेश बोर्ड आफ हाई स्कूल एंड इंटरमीडिएट एजूकेशन पहला बोर्ड था जिसकी स्थापना 1921 में हुई थी। राजपूताना, मध्य भारत तथा ग्वालियर इसके अधिकार क्षेत्र में आते थे और संयुक्त प्रांतों की सरकार द्वारा किए गए अभ्यावेदन के उत्तर में तत्कालीन भारत सरकार ने सभी क्षेत्रों के लिए वर्ष 1929 में एक संयुक्त बोर्ड स्थापित करने का सुझाव दिया जिसका नाम Сबोर्ड आफ हाई स्कूल एंड इंटरमीडिएट एजुकेशन राजपूतानाТ रखा गया। इसमें अजमेर, मेरवाड़ा मध्य भारत और ग्वालियर शामिल थे।
बोर्ड ने माध्यमिक शिक्षा स्तर पर तीव्र प्रगति और विस्तार किया जिसके फलस्वरूप इसके संस्थानों में शिक्षा के स्तर एवं स्वरूप में सुधार आया परन्तु राज्यों के विश्वविद्यालयों और देश के विभिन्न भागों में राज्य बोर्ड स्थापित हो जाने से केवल अजमेर, भोपाल और तत्पश्चात् विंध्य प्रदेश ही इसके अधिकार क्षेत्र में रह गए। इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1952 में बोर्ड में संगठानात्मक संशोधन किए जिससे इसका क्षेत्राधिकार भाग-ग और भाग- घ के क्षेत्रों तक बढ़ा दिया गया और बोर्ड को इसका वर्तमान नाम "केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड" दिया गया। अंततः, 1962 में बोर्ड का पुनर्गठन किया गया। इसके प्रमुख उद्देश्य थे-शिक्षा संस्थानों को अधिक प्रभावशाली ढ़ंग से सहयोग प्रदान करना, उन विद्यार्थियों की शैक्षिक आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी होना जिनके माता-पिता केन्द्रीय सरकार के कर्मचारी थे और निरंतर स्थानान्तरणीय पदों पर कार्यस्थ थे।
क्षेत्राधिकार
बोर्ड का अधिकार क्षेत्र व्यापक है और राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं से बाहर भी फैला हुआ है। पुनर्गठन के फलस्वरूप, पहले 'दिल्ली माध्यमिक शिक्षा बोर्ड' का केन्द्रीय बोर्ड में विलय कर दिया गया और इस प्रकार दिल्ली बोर्ड से मान्यता प्राप्त सभी शैक्षिक संस्थाएं भी केन्द्रीय बोर्ड का अंग बन गई। तदनन्तर, संघ शासित प्रदेश चण्डीगढ़, अरूणाचल प्रदेश, अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह, सिक्किम और अब झारखंड, उत्तरांचल एवं छत्तीसगढ़ के सभी स्कूलों ने भी बोर्ड से सम्बद्धता प्राप्त कर ली हैं। वर्ष 1962 में मात्र 309 विद्यालयों से अब 15.09.2014 तक 15799 विद्यालय बोर्ड से सम्बद्ध है जिसमें 23 देशों में 197 विद्यालय भी शामिल हैं।कुल нннннн1078 केन्द्रीय विद्यालय, 2482 सरकारी/ सहायता प्राप्त विद्यालय, 11443 स्वतन्त्र विद्यालय, 583 जवाहर नवोदय विद्यालय एवं 14 केन्द्रीय तिब्बतन स्कूल हैं।
विकेन्द्रीकरण
अपने कार्यों को अधिकाधिक प्रभावशाली ढंग से निष्पादित करने के उद्देश्य से बोर्ड द्वारा देश के विभिन्न भागों में क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित किए गए हैं ताकि सम्बद्ध विद्यालयों के साथ अधिक प्रतिक्रियाशीलता बढ़ सके। बोर्ड के दस क्षेत्रीय कार्यालय इलाहाबाद, अजमेर, चेन्नई, गुवाहाटी, पंचकुला, पटना, भुवनेश्वर, देहरादून, तिरुवनंतपुरम और दिल्ली में स्थित हैं। देश के बाहर स्थित विद्यालय, क्षेत्रीय कार्यालय दिल्ली के अंतर्गत आते हैं। सीबीएसई के क्षेत्रीय कार्यालयों का व्यापक क्षेत्राधिकार है। मुख्यालय, क्षेत्रीय कार्यालयों के कार्यकलापों पर नज़र रखता है। यद्यपि क्षेत्रीय कार्यालयों को पर्याप्त अधिकार दिए गए हैं तथापि नीतिगत मामले मुख्यालय को भेजे जाते हैं । प्रशासन संबंधी दिन प्रतिदिन के मामले, विद्यालयों से संपर्क, परीक्षा पूर्व और पश्च व्यवस्थाएं सम्बंधित क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा की जाती है ।
सीबीएसई के प्रमुख उद्देश्य हैं
गुणवत्ता का समझौता किए बिना बच्चों को तनाव रहित, छात्र केन्द्रित और सम्पूर्णवादी शिक्षा प्रदान करने के लिए शैक्षणिक गतिविधियों के उपयुक्त दृष्टिकोणों को परिभाषित करना।
विभिन्न पणधारियों से प्रतिपुष्टि प्राप्त करके शैक्षणिक गतिविधियों का विश्लेषण और अनुश्रवण करना
गुणवत्ता मामलों सहित विभिन्न शैक्षणिक गतिविधियों के कार्यान्वयन हेतु मानक विकसित करना; बोर्ड के विभिन्न शैक्षणिक और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के कार्यान्वयन का नियन्त्रण एवं समन्वय करना; शैक्षणिक गतिविधियां आयोजित करना और इस प्रक्रिया में शामिल अन्य एजेंसियों का पर्यवेक्षण करना
मनोवैज्ञानिक, शिक्षा शास्त्र और सामाजिक सिद्धान्तों के साथ अनुरूपता में शैक्षणिक उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए विधियों को बदलना तथा अनुकूल बनाना।
शिक्षक एवं छात्र अनुकूल तरीके से छात्रों की प्रगति का लिखित प्रमाण देने के लिए विद्यालयों को प्रोत्साहित करना।
राष्ट्रीय लक्ष्य के अनुरूप विद्यालय शिक्षा में गुणवत्ता बेन्चमार्क प्राप्त करने के लिए योजनाएं सुझाना।
शिक्षकों की व्यावसायिक सक्षमता अद्यतन करने के लिए विभिन्न क्षमता निर्माण तथा सशक्तिकरण कार्यक्रमों का अयोजन करना।
कक्षा 10 वीं और 12 वीं के अंत में सार्वजनिक परीक्षाएं आयोजित करना और परीक्षाओं के लिए शर्तें निर्धारित करना। सम्बद्ध विद्यालयों के सफल छात्रों को अर्हक प्रमाण पत्र प्रदान करना।
ऐसे छात्रों की शैक्षिक अपेक्षाएं पूरी करना जिनके माता-पिता स्थानान्तरणीय नौकरी में हैं।
परीक्षाओं के लिए कोर्स अनुदेशों को निर्धारित और अद्यतन करना।
परीक्षा के उद्देश्य से संस्थाओं को संबद्ध करना और देश के शैक्षणिक स्तर को बढ़ाना।